बनना हे त जग म मयारू बन के देख
पढ़ना हे त मया के दू आखर पढ़ के देख!
अमरीत पीये कस लागही ये जिनगी ह
काकरो मया म एक घांव तै मर के देख!
बड़ पावन निरमल अउ गहरी ये दाहरा
नइ पतियास त एक घांव उतर के देख
पूस के ठुनठुनी होय चाहे जेठ के भोंभरा
हरियरेच पाबे रंग एकर आंखी म भर के देख!
मन म मया त खदर छानी लागे राजमहल
बिन एकर बिरथा कतको तै समहर के देख!
ए हिरदे के मंदिर म बसे जेन भगवान के मुरत
नइ मेटाय कतको तै साबून निरमा घसर के देख!
ललित नागेश
बहेराभांठा(छुरा)
४९३९९६